
देहरादून में उत्तराखंड उद्यानिकी परिषद की कार्यशाला में किसानों को प्रशिक्षण देते अधिकारी।
देहरादून में उत्तराखंड उद्यानिकी परिषद के सर्किट हाउस में तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य परियोजना को क्षेत्रीय स्तर पर प्रभावी रूप से लागू करना और किसानों तथा हितधारकों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना था।
उत्तराखंड में उद्यानिकी और खाद्य प्रसंस्करण का महत्व
उत्तराखंड की भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियां फल और सब्जियों की खेती के लिए अनुकूल हैं। राज्य सरकार की नीति का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में औद्यानिकी को बढ़ावा देना और खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाना है। जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (जाइका) के सहयोग से यह परियोजना राज्य के विभिन्न जिलों में किसानों के लिए प्रशिक्षण, संसाधन और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराती है।
कार्यशाला का आयोजन और मुख्य गतिविधियां
उत्तराखंड उद्यानिकी परिषद के अंतर्गत उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग ने 22 से 24 सितंबर तक देहरादून के सर्किट हाउस में कार्यशाला आयोजित की।
H3: उद्देश्य और फोकस
- फील्ड स्तर पर फसल योजना बनाना
- किसानों की शंकाओं का समाधान
- जिला क्रियान्वयन इकाई, क्लस्टर आधारित व्यवसाय संगठन और किसान उत्पादक संगठन के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना
- परियोजना के संबंध में स्पष्ट दिशा निर्देश प्रदान करना
H3: प्रतिभागी और स्थान
कार्यशाला में गढ़वाल मंडल के टिहरी व उत्तरकाशी और कुमाऊँ मंडल के पिथौरागढ़ व नैनीताल से जिला क्रियान्वयन इकाई के पदाधिकारी, क्लस्टर व्यवसाय संगठन और किसान उत्पादक संगठन के प्रतिनिधि शामिल हुए।
कार्यक्रम में उप परियोजना निदेशक डॉ. रतन कुमार और डॉ. सुरेश राम ने कहा कि कार्यक्रम का संचालन उद्यान विभाग के योगेश भट्ट ने किया और परियोजना से जुड़े बाहरी विशेषज्ञों ने भी सक्रिय सहयोग प्रदान किया।
क्षेत्रीय स्तर पर संभावित लाभ
इस कार्यशाला से किसानों को फसल योजना, बेहतर तकनीक और बाजार तक पहुंच के लिए मार्गदर्शन मिलेगा। जिले के विभिन्न कृषि संगठनों के पदाधिकारियों के प्रशिक्षण से स्थानीय स्तर पर परियोजना का प्रभावी क्रियान्वयन संभव होगा। इससे किसान उत्पादक संगठनों की क्षमता भी बढ़ेगी और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।
इस तीन दिवसीय कार्यशाला ने परियोजना के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए स्पष्ट दिशा निर्देश प्रदान किए। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम से किसानों की तकनीकी समझ बढ़ेगी, औद्यानिकी क्षेत्र में उत्पादकता सुधार होगी और स्थानीय स्तर पर समन्वय मजबूत होगा।
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