
“श्रीनगर-बुघाणी-खिर्सू मोटरमार्ग पर बारिश से धंसी सड़क का दृश्य”
श्रीनगर-बुघाणी-खिर्सू मोटरमार्ग पर भू-धसाव: बरसात ने बढ़ाया खतरा, अनियोजित विकास बना वजह
श्रीनगर गढ़वाल का नाम आज फिर से चर्चा में है क्योंकि लगातार हो रही बरसात ने यहां की सड़कों को खतरनाक स्थिति में पहुंचा दिया है। श्रीनगर-बुघाणी-खिर्सू मोटरमार्ग, जो कि स्थानीय लोगों के लिए जीवनरेखा है, अब गंभीर खतरे की जद में है। खोला से दो किलोमीटर आगे सड़क का लगभग 50 मीटर पैच पूरी तरह धंस चुका है। यह केवल एक सामान्य घटना नहीं है बल्कि आने वाले दिनों में बड़े हादसे का संकेत है। पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन और भू-धसाव की घटनाएं वैसे ही आम हैं, लेकिन इस बार का खतरा और भी गंभीर माना जा रहा है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि समय रहते इस मार्ग का स्थायी उपचार नहीं किया गया तो सड़क पूरी तरह से बंद हो सकती है। इससे न केवल ग्रामीणों की आवाजाही बाधित होगी बल्कि श्रीनगर, बुघाणी और खिर्सू जैसे क्षेत्रों की आर्थिक और सामाजिक गतिविधियां भी प्रभावित होंगी। यह मार्ग पर्यटकों के लिए भी अहम है क्योंकि खिर्सू गढ़वाल का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। मार्ग पर आई यह समस्या पर्यटन सीजन में भी संकट पैदा कर सकती है।
बरसात का पानी और पहाड़ी झरनों से फूटे नोले सड़क पर बह रहे हैं। सड़क किनारे उचित नाली निर्माण और पानी निकासी की व्यवस्था न होने के कारण पानी सीधे सड़क पर गिर रहा है। इसका नतीजा है कि मिट्टी और पत्थर धंसते जा रहे हैं और सड़क लगातार टूट रही है। श्रीनगर से बुघाणी के बीच अब तक आधा दर्जन से अधिक भूस्खलन जोन बन चुके हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि विभाग ने इस पर जल्द ध्यान नहीं दिया तो यह मार्ग बड़े हादसों का कारण बन सकता है।
गढ़वाल विश्वविद्यालय के वरिष्ठ भूगर्भ वैज्ञानिक प्रोफेसर महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट का कहना है कि इस प्रकार की समस्या के पीछे सबसे बड़ी वजह अनियोजित विकास, पहाड़ी ढलानों पर अतिक्रमण और जल निकासी की खराब व्यवस्था है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि नालों से अतिक्रमण नहीं हटाया गया और पानी की निकासी की वैज्ञानिक व्यवस्था नहीं की गई तो भविष्य में श्रीनगर और उसके आसपास का इलाका किसी बड़ी आपदा का शिकार हो सकता है।
भूगर्भ वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालयी क्षेत्र वैसे ही संवेदनशील है और यहां का भूगोल मौसम के हिसाब से तेजी से बदलता है। लगातार बढ़ते निर्माण कार्य और ढलानों पर सड़कों का दबाव इन क्षेत्रों को और ज्यादा जोखिम में डाल रहा है। यहां हर साल हजारों पर्यटक आते हैं लेकिन यदि सड़कें इस प्रकार धंसती रहीं तो पर्यटन पर भी बड़ा असर पड़ेगा।
लोक निर्माण विभाग (लोनिवि) भी इस मामले पर सक्रिय है। अधिशासी अभियंता किशोर कुमार ने बताया कि भू-धसाव वाले हिस्से का निरीक्षण कर लिया गया है। फिलहाल मोटरमार्ग को दुरुस्त करने के लिए इंस्टीमेंट तैयार किया जा रहा है। विभाग समय-समय पर सड़क किनारे नालियों का निर्माण करता है ताकि भूकटाव की समस्या को कम किया जा सके। हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि यह प्रयास स्थायी समाधान नहीं हैं। बरसात खत्म होते ही नालियों का काम अधूरा छोड़ दिया जाता है जिससे हर साल यह समस्या और विकराल रूप ले लेती है।
सड़क धंसने की समस्या केवल आवागमन को बाधित करने तक सीमित नहीं है बल्कि यह आर्थिक दृष्टि से भी बड़ा नुकसान है। ग्रामीण इलाकों से शहरों तक अनाज, सब्जियां और अन्य आवश्यक वस्तुएं इसी मार्ग से आती हैं। यदि यह मार्ग बंद हो गया तो ग्रामीणों को अपने उत्पाद बेचने में कठिनाई होगी और शहरों में आपूर्ति भी प्रभावित होगी। साथ ही आपातकालीन स्थितियों जैसे बीमार व्यक्ति को अस्पताल ले जाने में भी बड़ी समस्या आ सकती है।
स्थानीय लोग अब सरकार और विभाग से ठोस कदम उठाने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि अस्थायी पैचवर्क से समस्या का हल नहीं निकलेगा। जब तक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सड़क निर्माण और ढलानों की सुरक्षा नहीं की जाएगी तब तक हर बरसात में यही समस्या सामने आती रहेगी।
दरअसल, इस क्षेत्र में सड़कों का निर्माण ज्यादातर बिना लंबे समय की योजना के किया गया है। ढलानों पर सीधा कट लगाकर सड़कें बना दी जाती हैं, जिससे पहाड़ कमजोर हो जाता है। बारिश होने पर मिट्टी बह जाती है और सड़क धंसने लगती है। विशेषज्ञों का कहना है कि यहां रिटेनिंग वॉल, ड्रेनेज सिस्टम और ग्रीन कवर को मजबूत करना बेहद जरूरी है।
भूगर्भ वैज्ञानिकों के अनुसार यदि तत्काल वैज्ञानिक तकनीक अपनाकर सड़कों का निर्माण किया जाए तो इस तरह की आपदाओं से काफी हद तक बचा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर सड़क किनारे मजबूत नालियों का निर्माण, जल निकासी की उचित व्यवस्था और ढलानों पर पौधारोपण करने से मिट्टी के कटाव को कम किया जा सकता है।
कुल मिलाकर श्रीनगर-बुघाणी-खिर्सू मोटरमार्ग पर आई समस्या पहाड़ी क्षेत्रों की एक बड़ी सच्चाई को उजागर करती है। यहां विकास की जरूरत है लेकिन अनियोजित विकास और प्राकृतिक संसाधनों के साथ छेड़छाड़ भारी पड़ रही है। यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया तो यह न केवल सड़क बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए आपदा बन सकता है।
आज जरूरत है कि सरकार, विभाग और वैज्ञानिक आपस में मिलकर इस समस्या का स्थायी समाधान खोजें। स्थानीय लोगों की भी जिम्मेदारी है कि वे नालों और जल निकासी मार्गों पर अतिक्रमण न करें। यदि सभी स्तर पर गंभीरता से प्रयास किए जाएं तो श्रीनगर-बुघाणी-खिर्सू मोटरमार्ग को बचाया जा सकता है और आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित बनाया जा सकता है।
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