
अल्मोड़ा में पदोन्नति और स्थानांतरण की मांग को लेकर धरना देते शिक्षक
अल्मोड़ा में बुधवार को शिक्षकों का आक्रोश फूट पड़ा। जनपद के सभी राजकीय माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षक मुख्य शिक्षा अधिकारी कार्यालय परिसर में एकजुट होकर धरने पर बैठ गए। शिक्षकों ने सरकार और शिक्षा विभाग पर उपेक्षा का गंभीर आरोप लगाते हुए स्पष्ट कहा कि पदोन्नति और स्थानांतरण उनका अधिकार है, जिसे किसी भी हालत में छीना नहीं जा सकता। शिक्षकों ने नारेबाजी करते हुए सरकार को चेतावनी दी कि यदि उनकी मांगों को जल्द पूरा नहीं किया गया, तो आंदोलन को और व्यापक किया जाएगा।
धरने में शिक्षकों ने यह भी मांग रखी कि प्रधानाचार्य की सीधी भर्ती प्रक्रिया को तुरंत निरस्त किया जाए, क्योंकि इससे शिक्षकों के भविष्य और पदोन्नति की संभावनाओं पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। उनका कहना था कि वर्षों से सेवा दे रहे शिक्षकों को प्रमोशन का अधिकार मिलना चाहिए, लेकिन सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। धरने को एजुकेशन मिनिस्ट्रीयल फेडरेशन के प्रांतीय अध्यक्ष पुष्कर भैसोड़ा, उत्तरांचल स्टेट प्राइमरी टीचर्स एसोसिएशन के जिला मंत्री जगदीश भंडारी और उत्तरांचल प्रधानाचार्य परिषद के जिलाध्यक्ष हिमांशु तिवारी ने भी समर्थन दिया। उन्होंने कहा कि शिक्षक किसी भी समाज की रीढ़ होते हैं और अगर उन्हें ही न्याय नहीं मिलेगा तो शिक्षा व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होगी।
धरने में विभिन्न शिक्षक संगठनों और ब्लॉकों के पदाधिकारियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। आंदोलन में पूर्व प्रांतीय महामंत्री सोहन सिंह माजिला, मंडलीय मंत्री रवि शंकर गुसाई, पूर्व मंडलीय मंत्री कैलाश सिंह डोलिया, मंडल संरक्षक हेम जोशी, जिला अध्यक्ष भूपाल सिंह चिलवाल, जिला मंत्री राजू मेहरा, पूर्व जिला अध्यक्ष हीरा सिंह बोरा, भारतेंदु जोशी, जिला उपाध्यक्ष मदन भंडारी, जिला महिला उपाध्यक्ष मीनाक्षी जोशी, जिला संयुक्त मंत्री प्रकाश भट्ट, जिला संयुक्त मंत्री महिला राधा लसपाल नबियाल, जिला संगठन मंत्री जीवन नेगी, जिला संगठन मंत्री महिला लता वर्मा, जिला आय-व्यय निरीक्षक चंदन रावत समेत कई प्रमुख लोग मौजूद रहे।
धरने में ब्लॉक स्तर पर भी बड़ी संख्या में पदाधिकारी शामिल हुए। हवालबाग से ब्लॉक अध्यक्ष गोविंद रावत और मंत्री खुशहाल महर, धौलादेवी से त्रिभुवन बिष्ट और नितेश कांडपाल, लमगड़ा से गिरीश पांडे और दीपक बिष्ट, ताकुला से ललित तिवारी और वीरेंद्र सिजवाली, भैंसियाछाना से भारत जोशी और पंकज भट्ट, ताड़ीखेत से शिवराज बिष्ट और रमेश राम, स्याल्दे से मान सिंह रावत और हरीश नेगी, सल्ट से सुरेंद्र सिंह और अमित यादव, द्वाराहाट से बिशन सिंह अधिकारी और विनोद पपने, भिकियासैंण से मनोज कुमार आर्य, चौखुटिया से धर्मवीर सिंह और सतीश तिवारी सहित लगभग हर ब्लॉक से शिक्षक-शिक्षिकाओं ने भागीदारी दर्ज की।
इसके अलावा बृजेश डसीला, भोला दत्त पंत, हीरा सिंह डोबाल, जनार्जन तिवारी, कैलाश नयाल, ललित मोहन तिवारी, देवेश बिष्ट, ललित प्रकाश, सुरेंद्र गोस्वामी, मेघा मनराल, गौरव डालाकोटी, ममता मेहता, प्रमोद चंद्र, केसर सिंह, कृपाल सिंह, गिरीश बिष्ट समेत बड़ी संख्या में शिक्षक-शिक्षिकाएं उपस्थित रहे। शिक्षकों ने कहा कि सरकार बार-बार आश्वासन देती है लेकिन हकीकत में कुछ नहीं करती। पिछले कई वर्षों से पदोन्नति रुकी हुई है और स्थानांतरण की प्रक्रिया भी पारदर्शी तरीके से लागू नहीं की जा रही है। शिक्षकों का कहना है कि स्थानांतरण और प्रमोशन उनकी सेवा का हिस्सा है, जिसे टालकर सरकार उनके साथ अन्याय कर रही है।
धरने में मौजूद शिक्षकों ने यह भी कहा कि अगर जल्द ही उनकी मांगों को पूरा नहीं किया गया, तो यह आंदोलन केवल अल्मोड़ा तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे उत्तराखंड में इसे तेज किया जाएगा। उन्होंने चेतावनी दी कि यह आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है, लेकिन सरकार ने अगर उदासीन रवैया जारी रखा तो मजबूरन शिक्षक सड़कों पर उतरकर उग्र आंदोलन करने को बाध्य होंगे। धरने में शामिल संगठन नेताओं ने कहा कि उत्तराखंड सरकार लगातार शिक्षा विभाग की अनदेखी कर रही है। जब तक पदोन्नति और स्थानांतरण की मांग पूरी नहीं होती, तब तक शिक्षक आंदोलन जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि अगर सरकार वाकई शिक्षा व्यवस्था सुधारना चाहती है, तो सबसे पहले शिक्षकों की समस्याओं को प्राथमिकता देनी होगी।
इस धरने ने यह साफ कर दिया है कि शिक्षक अब चुप बैठने वाले नहीं हैं। उनकी मांगें पूरी तरह जायज हैं और अगर इन्हें नजरअंदाज किया गया तो आने वाले समय में शिक्षा व्यवस्था और ज्यादा अव्यवस्थित हो जाएगी। आंदोलनकारियों ने ऐलान किया कि आने वाले दिनों में अगर उनकी समस्याओं का हल नहीं हुआ तो वे प्रदेश स्तर पर विशाल प्रदर्शन करेंगे। धरना स्थल पर मौजूद शिक्षक-शिक्षिकाओं ने एक स्वर में सरकार से यह अपील की कि जल्द से जल्द प्रमोशन और ट्रांसफर की प्रक्रिया को बहाल किया जाए। साथ ही, प्रधानाचार्य की सीधी भर्ती को निरस्त कर शिक्षकों को उनके अधिकारों से वंचित होने से बचाया जाए।