
"पूर्व विधायक राजेश शुक्ला कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत से नगला क्षेत्र के भूमि विवाद और 750 परिवारों के भविष्य पर चर्चा करते हुए"
रिपोर्ट जतिन
रुद्रपुर में नगला क्षेत्र के लगभग 750 परिवारों का भविष्य अधर में लटका हुआ है और इसे सुरक्षित करने की मांग तेज हो गई है। इसी मुद्दे पर रविवार को पूर्व विधायक राजेश शुक्ला ने नगला नगरपालिका अध्यक्ष सचिन शुक्ला, सभासदों और नगला बचाओ समिति के सदस्यों के साथ कुमाऊं मंडल आयुक्त दीपक रावत से कैंप कार्यालय हल्द्वानी में भेंट की। इस मुलाकात के दौरान भूमि सीमांकन और अतिक्रमण के विवाद पर विस्तार से चर्चा हुई।
पूर्व विधायक राजेश शुक्ला ने बताया कि मंत्रिमंडलीय उप समिति के निर्देशानुसार एक विशेष समिति गठित की गई है, जिसकी अध्यक्षता स्वयं वे कर रहे हैं। इस समिति को नगला क्षेत्र में लोक निर्माण विभाग, तराई स्टेट फार्म और वन भूमि का सीमांकन और चिह्नीकरण करने की जिम्मेदारी दी गई है। समिति के पास आवश्यकता पड़ने पर सर्वे ऑफ इंडिया से तकनीकी सर्वेक्षण कराने का अधिकार भी है। शुक्ला ने वर्ष 1966 के लोक निर्माण विभाग के नोटिस का उल्लेख करते हुए कहा कि उस समय विभाग ने सड़क के दोनों ओर 50-50 फीट भूमि को अपने स्वामित्व में घोषित किया था। इस भूमि पर किसी भी प्रकार का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता, बावजूद इसके समय-समय पर विवाद खड़े होते रहे हैं।
शुक्ला ने जोर देते हुए कहा कि नगला क्षेत्र के लगभग 750 परिवारों का जीवन और भविष्य इसी भूमि विवाद पर निर्भर है। यदि इस मामले में शीघ्र ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इन परिवारों का भविष्य असुरक्षित हो जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि समिति का मुख्य उद्देश्य निष्पक्ष सर्वेक्षण और सही सीमांकन कर क्षेत्र की जनता को स्थायी राहत प्रदान करना है। उन्होंने यह भी कहा कि समिति को इस दिशा में त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए ताकि क्षेत्र के लोगों का विश्वास बहाल हो सके। इस मुलाकात के दौरान कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि समिति की बैठक जल्द ही बुलाई जाएगी और उपलब्ध तथ्यों की निष्पक्ष जांच की जाएगी। उन्होंने कहा कि जो भी निर्णय लिया जाएगा, वह नियमानुसार और निष्पक्ष होगा ताकि सभी पक्षों के हित सुरक्षित रहें।
नगला क्षेत्र के लोगों की मुख्य चिंता यह है कि भूमि विवाद और अतिक्रमण की समस्या उनके भविष्य को प्रभावित कर रही है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि वे दशकों से यहां रह रहे हैं और अब उनके मकान और जमीन विवाद की भेंट चढ़ सकते हैं। इस स्थिति में परिवारों का जीवन संकट में पड़ सकता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि सरकार और प्रशासन को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए और शीघ्र समाधान निकालना चाहिए। उन्होंने मांग की है कि भूमि सीमांकन का कार्य पारदर्शिता और तकनीकी सटीकता के साथ किया जाए, ताकि किसी को भी अन्याय का सामना न करना पड़े।
इस पूरे घटनाक्रम में “नगला बचाओ समिति” की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। समिति लगातार स्थानीय लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठा रही है। समिति का कहना है कि जब तक क्षेत्र के लोगों को भूमि पर सुरक्षित अधिकार नहीं मिल जाता, वे आंदोलन जारी रखेंगे। नगला क्षेत्र के विवाद का इतिहास भी लंबा है। 1966 के नोटिस से लेकर अब तक इस क्षेत्र में कई बार सर्वेक्षण और चिह्नीकरण की बातें उठती रही हैं, लेकिन ठोस समाधान सामने नहीं आया। यही कारण है कि आज लगभग 750 परिवारों का भविष्य सवालों के घेरे में है।
इस खबर का एक बड़ा पहलू यह भी है कि यदि सरकार और प्रशासन ठोस कदम नहीं उठाते, तो यह मुद्दा सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी बड़ा विवाद बन सकता है। स्थानीय लोग चाहते हैं कि इस मामले को सिर्फ कागजों में न रखा जाए, बल्कि जमीनी स्तर पर कार्रवाई हो। नगला क्षेत्र के लिए यह समय बेहद महत्वपूर्ण है। अगर समिति निष्पक्ष तरीके से सीमांकन और चिह्नीकरण का कार्य करती है, तो यह न केवल 750 परिवारों का भविष्य सुरक्षित करेगा, बल्कि क्षेत्र में शांति और स्थिरता भी लाएगा।
राजेश शुक्ला और प्रतिनिधिमंडल की यह पहल स्थानीय लोगों के लिए उम्मीद की किरण है। अब देखने वाली बात यह है कि प्रशासन इस पर कितनी तेजी से और किस प्रकार की कार्रवाई करता है।रुद्रपुर में नगला क्षेत्र के लगभग 750 परिवारों का भविष्य अधर में लटका हुआ है और इसे सुरक्षित करने की मांग तेज हो गई है। इसी मुद्दे पर रविवार को पूर्व विधायक राजेश शुक्ला ने नगला नगरपालिका अध्यक्ष सचिन शुक्ला, सभासदों और नगला बचाओ समिति के सदस्यों के साथ कुमाऊं मंडल आयुक्त दीपक रावत से कैंप कार्यालय हल्द्वानी में भेंट की। इस मुलाकात के दौरान भूमि सीमांकन और अतिक्रमण के विवाद पर विस्तार से चर्चा हुई।
पूर्व विधायक राजेश शुक्ला ने बताया कि मंत्रिमंडलीय उप समिति के निर्देशानुसार एक विशेष समिति गठित की गई है, जिसकी अध्यक्षता स्वयं वे कर रहे हैं। इस समिति को नगला क्षेत्र में लोक निर्माण विभाग, तराई स्टेट फार्म और वन भूमि का सीमांकन और चिह्नीकरण करने की जिम्मेदारी दी गई है। समिति के पास आवश्यकता पड़ने पर सर्वे ऑफ इंडिया से तकनीकी सर्वेक्षण कराने का अधिकार भी है। शुक्ला ने वर्ष 1966 के लोक निर्माण विभाग के नोटिस का उल्लेख करते हुए कहा कि उस समय विभाग ने सड़क के दोनों ओर 50-50 फीट भूमि को अपने स्वामित्व में घोषित किया था। इस भूमि पर किसी भी प्रकार का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता, बावजूद इसके समय-समय पर विवाद खड़े होते रहे हैं।
शुक्ला ने जोर देते हुए कहा कि नगला क्षेत्र के लगभग 750 परिवारों का जीवन और भविष्य इसी भूमि विवाद पर निर्भर है। यदि इस मामले में शीघ्र ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इन परिवारों का भविष्य असुरक्षित हो जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि समिति का मुख्य उद्देश्य निष्पक्ष सर्वेक्षण और सही सीमांकन कर क्षेत्र की जनता को स्थायी राहत प्रदान करना है। उन्होंने यह भी कहा कि समिति को इस दिशा में त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए ताकि क्षेत्र के लोगों का विश्वास बहाल हो सके।
इस मुलाकात के दौरान कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि समिति की बैठक जल्द ही बुलाई जाएगी और उपलब्ध तथ्यों की निष्पक्ष जांच की जाएगी। उन्होंने कहा कि जो भी निर्णय लिया जाएगा, वह नियमानुसार और निष्पक्ष होगा ताकि सभी पक्षों के हित सुरक्षित रहें।
नगला क्षेत्र के लोगों की मुख्य चिंता यह है कि भूमि विवाद और अतिक्रमण की समस्या उनके भविष्य को प्रभावित कर रही है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि वे दशकों से यहां रह रहे हैं और अब उनके मकान और जमीन विवाद की भेंट चढ़ सकते हैं। इस स्थिति में परिवारों का जीवन संकट में पड़ सकता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि सरकार और प्रशासन को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए और शीघ्र समाधान निकालना चाहिए। उन्होंने मांग की है कि भूमि सीमांकन का कार्य पारदर्शिता और तकनीकी सटीकता के साथ किया जाए, ताकि किसी को भी अन्याय का सामना न करना पड़े।
इस पूरे घटनाक्रम में “नगला बचाओ समिति” की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। समिति लगातार स्थानीय लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठा रही है। समिति का कहना है कि जब तक क्षेत्र के लोगों को भूमि पर सुरक्षित अधिकार नहीं मिल जाता, वे आंदोलन जारी रखेंगे। नगला क्षेत्र के विवाद का इतिहास भी लंबा है। 1966 के नोटिस से लेकर अब तक इस क्षेत्र में कई बार सर्वेक्षण और चिह्नीकरण की बातें उठती रही हैं, लेकिन ठोस समाधान सामने नहीं आया। यही कारण है कि आज लगभग 750 परिवारों का भविष्य सवालों के घेरे में है।
इस खबर का एक बड़ा पहलू यह भी है कि यदि सरकार और प्रशासन ठोस कदम नहीं उठाते, तो यह मुद्दा सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी बड़ा विवाद बन सकता है। स्थानीय लोग चाहते हैं कि इस मामले को सिर्फ कागजों में न रखा जाए, बल्कि जमीनी स्तर पर कार्रवाई हो। नगला क्षेत्र के लिए यह समय बेहद महत्वपूर्ण है। अगर समिति निष्पक्ष तरीके से सीमांकन और चिह्नीकरण का कार्य करती है, तो यह न केवल 750 परिवारों का भविष्य सुरक्षित करेगा, बल्कि क्षेत्र में शांति और स्थिरता भी लाएगा।
राजेश शुक्ला और प्रतिनिधिमंडल की यह पहल स्थानीय लोगों के लिए उम्मीद की किरण है। अब देखने वाली बात यह है कि प्रशासन इस पर कितनी तेजी से और किस प्रकार की कार्रवाई करता है।रुद्रपुर में नगला क्षेत्र के लगभग 750 परिवारों का भविष्य अधर में लटका हुआ है और इसे सुरक्षित करने की मांग तेज हो गई है। इसी मुद्दे पर रविवार को पूर्व विधायक राजेश शुक्ला ने नगला नगरपालिका अध्यक्ष सचिन शुक्ला, सभासदों और नगला बचाओ समिति के सदस्यों के साथ कुमाऊं मंडल आयुक्त दीपक रावत से कैंप कार्यालय हल्द्वानी में भेंट की। इस मुलाकात के दौरान भूमि सीमांकन और अतिक्रमण के विवाद पर विस्तार से चर्चा हुई।
पूर्व विधायक राजेश शुक्ला ने बताया कि मंत्रिमंडलीय उप समिति के निर्देशानुसार एक विशेष समिति गठित की गई है, जिसकी अध्यक्षता स्वयं वे कर रहे हैं। इस समिति को नगला क्षेत्र में लोक निर्माण विभाग, तराई स्टेट फार्म और वन भूमि का सीमांकन और चिह्नीकरण करने की जिम्मेदारी दी गई है। समिति के पास आवश्यकता पड़ने पर सर्वे ऑफ इंडिया से तकनीकी सर्वेक्षण कराने का अधिकार भी है। शुक्ला ने वर्ष 1966 के लोक निर्माण विभाग के नोटिस का उल्लेख करते हुए कहा कि उस समय विभाग ने सड़क के दोनों ओर 50-50 फीट भूमि को अपने स्वामित्व में घोषित किया था। इस भूमि पर किसी भी प्रकार का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता, बावजूद इसके समय-समय पर विवाद खड़े होते रहे हैं।
शुक्ला ने जोर देते हुए कहा कि नगला क्षेत्र के लगभग 750 परिवारों का जीवन और भविष्य इसी भूमि विवाद पर निर्भर है। यदि इस मामले में शीघ्र ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इन परिवारों का भविष्य असुरक्षित हो जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि समिति का मुख्य उद्देश्य निष्पक्ष सर्वेक्षण और सही सीमांकन कर क्षेत्र की जनता को स्थायी राहत प्रदान करना है। उन्होंने यह भी कहा कि समिति को इस दिशा में त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए ताकि क्षेत्र के लोगों का विश्वास बहाल हो सके।
इस मुलाकात के दौरान कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि समिति की बैठक जल्द ही बुलाई जाएगी और उपलब्ध तथ्यों की निष्पक्ष जांच की जाएगी। उन्होंने कहा कि जो भी निर्णय लिया जाएगा, वह नियमानुसार और निष्पक्ष होगा ताकि सभी पक्षों के हित सुरक्षित रहें। नगला क्षेत्र के लोगों की मुख्य चिंता यह है कि भूमि विवाद और अतिक्रमण की समस्या उनके भविष्य को प्रभावित कर रही है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि वे दशकों से यहां रह रहे हैं और अब उनके मकान और जमीन विवाद की भेंट चढ़ सकते हैं। इस स्थिति में परिवारों का जीवन संकट में पड़ सकता है।
स्थानीय लोगों का मानना है कि सरकार और प्रशासन को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए और शीघ्र समाधान निकालना चाहिए। उन्होंने मांग की है कि भूमि सीमांकन का कार्य पारदर्शिता और तकनीकी सटीकता के साथ किया जाए, ताकि किसी को भी अन्याय का सामना न करना पड़े। इस पूरे घटनाक्रम में “नगला बचाओ समिति” की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। समिति लगातार स्थानीय लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठा रही है। समिति का कहना है कि जब तक क्षेत्र के लोगों को भूमि पर सुरक्षित अधिकार नहीं मिल जाता, वे आंदोलन जारी रखेंगे।
नगला क्षेत्र के विवाद का इतिहास भी लंबा है। 1966 के नोटिस से लेकर अब तक इस क्षेत्र में कई बार सर्वेक्षण और चिह्नीकरण की बातें उठती रही हैं, लेकिन ठोस समाधान सामने नहीं आया। यही कारण है कि आज लगभग 750 परिवारों का भविष्य सवालों के घेरे में है।
इस खबर का एक बड़ा पहलू यह भी है कि यदि सरकार और प्रशासन ठोस कदम नहीं उठाते, तो यह मुद्दा सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी बड़ा विवाद बन सकता है। स्थानीय लोग चाहते हैं कि इस मामले को सिर्फ कागजों में न रखा जाए, बल्कि जमीनी स्तर पर कार्रवाई हो। नगला क्षेत्र के लिए यह समय बेहद महत्वपूर्ण है। अगर समिति निष्पक्ष तरीके से सीमांकन और चिह्नीकरण का कार्य करती है, तो यह न केवल 750 परिवारों का भविष्य सुरक्षित करेगा, बल्कि क्षेत्र में शांति और स्थिरता भी लाएगा। राजेश शुक्ला और प्रतिनिधिमंडल की यह पहल स्थानीय लोगों के लिए उम्मीद की किरण है। अब देखने वाली बात यह है कि प्रशासन इस पर कितनी तेजी से और किस प्रकार की कार्रवाई करता है।
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