मां नंदा-सुनंदा मेले की तैयारी के दौरान दुलागांव में कदली वृक्षों का चयन करती मंदिर समितिमां नंदा-सुनंदा मेले की तैयारी के दौरान दुलागांव में कदली वृक्षों का चयन करती मंदिर समिति

अल्मोड़ा:उत्तराखंड की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का प्रमुख हिस्सा माने जाने वाला मां नंदा-सुनंदा मेला एक बार फिर से अपने पूरे पारंपरिक और आध्यात्मिक उल्लास के साथ मनाए जाने की तैयारियों में जुट गया है। नंदा देवी मंदिर समिति, अल्मोड़ा ने इस वर्ष भी मेले को भव्य और श्रद्धापूर्ण तरीके से आयोजित करने के लिए जोर-शोर से तैयारियां शुरू कर दी हैं।

शनिवार को मंदिर समिति के पदाधिकारियों ने रैलाकोट क्षेत्र के दुलागांव का दौरा किया, जहां उन्होंने परंपरानुसार मां नंदा और सुनंदा की प्रतिमाओं के निर्माण के लिए पूजा योग्य कदली वृक्षों (केले के खामों) का चयन किया। इन वृक्षों का चयन न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह नंदा राजजात यात्रा की आस्था से भी गहराई से जुड़ा हुआ है।

परंपरा और श्रद्धा का प्रतीक: कदली वृक्षों का चयन

इस चयन प्रक्रिया में मंदिर समिति के व्यवस्थापक अनूप साह, पार्षद अर्जुन बिष्ट, अमित साह मोनू, अभिषेक जोशी सहित अन्य सदस्य शामिल रहे। इनके साथ बड़ी संख्या में ग्रामीण भी मौजूद रहे। परंपरा के अनुसार, स्थानीय ग्रामीणों की उपस्थिति में कदली वृक्षों का विधिपूर्वक अवलोकन कर उन्हें चुनने की प्रक्रिया पूरी की जाती है।

इस मौके पर धीरेन्द्र सिंह रावत, हेमेंद्र सिंह रावत, कल्याण सिंह रावत, गोपाल सिंह, भगवान सिंह, धन सिंह और योगेश सिंह जैसे स्थानीय लोग भी श्रद्धा से उपस्थित रहे। इस आयोजन को एक पुण्य कार्य के रूप में देखा जाता है, जिसे श्रद्धा, परंपरा और सामाजिक सहभागिता का प्रतीक माना जाता है।

नंदा-सुनंदा प्रतिमाओं का निर्माण शुरू होगा जल्द

मां नंदा और मां सुनंदा की प्रतिमाएं हर वर्ष इन्हीं पवित्र कदली वृक्षों से बनाई जाती हैं, जिन्हें विशेष धार्मिक विधियों के तहत मंदिर तक लाया जाता है। मंदिर समिति का कहना है कि अगले कुछ दिनों में प्रतिमाओं के निर्माण का कार्य भी विधिपूर्वक शुरू कर दिया जाएगा, जिसमें परंपरागत कारीगर और स्थानीय कलाकार महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

इस बार मेले को बनाया जाएगा और भी खास

मंदिर समिति के व्यवस्थापक अनूप साह ने जानकारी दी कि इस वर्ष का नंदा-सुनंदा मेला पूर्व वर्षों की तुलना में अधिक भव्य और व्यवस्थित होगा। श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कई नए इंतजाम किए जा रहे हैं।

उनके अनुसार, मंदिर परिसर में:श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्थित बैठने की व्यवस्थाप्रसाद वितरण केंद्र धार्मिक अनुष्ठान की विस्तृत रूपरेखा सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखलाको विशेष रूप से तैयार किया जा रहा है।

स्थानीय सहभागिता ही है मेले की आत्माअनूप साह ने कहा कि, “यह मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह स्थानीय जनता की सहभागिता और आस्था से जीवंत होता है। हर वर्ष की तरह इस बार भी स्थानीय लोगों का उत्साह अद्वितीय है।”स्थानीय लोगों का यह भी मानना है कि नंदा-सुनंदा मेला उनके लिए एक भावनात्मक और सामाजिक उत्सव है, जो पूरे क्षेत्र को एक सूत्र में बांध देता है।

यह भी पढ़ें 👉 ग्रामोत्थान (रीप) परियोजना से ‘खुशी स्वयं सहायता समूह’ ने बदली किस्मत: फूलों की खेती से बना लखपति बनने का मार्ग…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *