
शांतिकुंज में सामूहिक श्राद्ध तर्पण संस्कार करते श्रद्धालु।शांतिकुंज में सामूहिक श्राद्ध तर्पण संस्कार करते श्रद्धालु।
सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या के पावन अवसर पर हरिद्वार के शांतिकुंज आश्रम में विशाल सामूहिक श्राद्ध तर्पण संस्कार का आयोजन किया गया। इस अनुष्ठान में देश के विभिन्न राज्यों से आए हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लेकर अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए आहुति अर्पित की। पूरे दिनभर चलने वाले इस विशेष कार्यक्रम में चार अलग-अलग स्थलों पर 24 पारियों में तर्पण एवं श्राद्ध संस्कार सम्पन्न हुए। आयोजन की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुल मिलाकर 12 हजार से अधिक लोगों ने विधिवत तरीके से श्राद्ध कर्म कर अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी।
शांतिकुंज में हुए इस आयोजन की सबसे खास बात यह रही कि यहां सिर्फ व्यक्तिगत पितरों के लिए ही नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र की सामूहिक शांति के लिए भी प्रार्थनाएं की गईं। देशभर में समय-समय पर आने वाली प्राकृतिक आपदाओं, दुर्घटनाओं और संकटों में दिवंगत हुई आत्माओं को शांति प्रदान करने के लिए विशेष मंत्रोच्चारण और यज्ञ का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मौजूद आचार्यों ने श्रद्धालुओं को जीवन के महत्व, पितरों के प्रति कृतज्ञता और पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी जिम्मेदारियों के बारे में बताया। संस्कार के दौरान पंडितों और ब्रह्मचारियों ने शास्त्रोक्त विधि से सभी को श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान की प्रक्रिया कराई।
आयोजन के अंतर्गत श्रद्धालुओं को केवल धार्मिक क्रियाओं तक सीमित नहीं रखा गया, बल्कि उन्हें पर्यावरण की रक्षा का संकल्प भी दिलाया गया। हर व्यक्ति से कम से कम एक पौधा लगाने और उसकी देखभाल करने का आग्रह किया गया। शांतिकुंज प्रशासन ने यह संदेश दिया कि पितरों को सच्ची श्रद्धांजलि केवल अनुष्ठान से नहीं, बल्कि प्रकृति की रक्षा से भी दी जा सकती है। पौधरोपण का संकल्प देकर इस आयोजन ने सनातन परंपरा और आधुनिक पर्यावरणीय चेतना को एक साथ जोड़ने का कार्य किया।
व्यवस्थापक योगेन्द्र गिरि ने इस अवसर पर कहा कि शांतिकुंज का यह आयोजन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि समाज को आध्यात्मिकता की ओर ले जाने का प्रयास है। उन्होंने बताया कि सनातन संस्कृति में पितृ तर्पण और श्राद्ध की परंपरा केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति आभार व्यक्त करने का माध्यम है। इस प्रकार के आयोजनों से नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति के गूढ़ रहस्यों को समझने का अवसर मिलता है। उन्होंने कहा कि पितृ श्राद्ध को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ना आज के समय की महत्वपूर्ण आवश्यकता है, जिससे समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सके।
श्रद्धालुओं ने इस आयोजन को अद्भुत अनुभव बताते हुए कहा कि यहां की आध्यात्मिक ऊर्जा ने उन्हें अपने पूर्वजों से जुड़ने का अवसर दिया। देश के विभिन्न हिस्सों से आए लोगों ने बताया कि शांतिकुंज में आयोजित यह सामूहिक श्राद्ध न केवल उनके पितरों के लिए पुण्यदायी रहा, बल्कि इससे उनके मन को शांति और संतोष भी प्राप्त हुआ। अनुष्ठान में शामिल होने के बाद कई श्रद्धालुओं ने यह संकल्प लिया कि वे अपने घर लौटने के बाद भी पर्यावरण संरक्षण के लिए सक्रिय रहेंगे और अपने जीवन में प्रकृति के प्रति कृतज्ञता बनाए रखेंगे।
शांतिकुंज में दिनभर वातावरण मंत्रोच्चार, हवन कुंडों की सुगंध और वैदिक स्तोत्रों की गूंज से पवित्र बना रहा। चार अलग-अलग स्थलों पर समानांतर रूप से चल रहे तर्पण कार्यक्रमों में प्रशिक्षित आचार्यों ने हर पारी को व्यवस्थित ढंग से पूर्ण कराया। उपस्थित श्रद्धालु समयानुसार अपनी-अपनी पारियों में सम्मिलित होकर अपने पितरों के प्रति श्रद्धा अर्पित करते रहे। पितृ तर्पण के बाद सभी को प्रसाद वितरित किया गया और आचार्यों द्वारा सनातन धर्म में पितृ कर्म के महत्व पर प्रवचन दिया गया।
यह आयोजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं बल्कि सामूहिक सामाजिक चेतना का प्रतीक बन गया। हरिद्वार जैसे पवित्र तीर्थस्थल पर आयोजित इस कार्यक्रम ने यह संदेश दिया कि हमारी परंपराएं केवल अतीत को स्मरण करने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे वर्तमान और भविष्य को भी दिशा प्रदान करती हैं। पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए जब हजारों लोग एक साथ तर्पण में सम्मिलित हुए तो वातावरण में सामूहिक एकता और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम देखने को मिला।
सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर शांतिकुंज का यह आयोजन भारतीय संस्कृति की उस अद्भुत परंपरा को पुनर्जीवित करता है जिसमें पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक जिम्मेदारी का संदेश एक साथ समाहित है। इस अवसर पर हजारों श्रद्धालुओं ने न केवल धार्मिक आस्था के साथ श्राद्ध तर्पण सम्पन्न किया बल्कि यह भी संकल्प लिया कि वे अपने जीवन में प्रकृति और संस्कृति दोनों के संरक्षण के लिए प्रयासरत रहेंगे। इस प्रकार शांतिकुंज ने एक बार फिर साबित किया कि सनातन संस्कृति केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं, बल्कि यह जीवन को संतुलन, कृतज्ञता और सतत विकास की राह दिखाने वाली प्रेरणा है।
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