
दोहा में इजरायली हमले के बाद हमास कमांडर की तस्वीर
दोहा में इजरायल के हमले ने हालात को बेहद गंभीर बना दिया है। कतर लंबे समय से हमास और इजरायल के बीच मध्यस्थता कर शांति बहाली की कोशिश कर रहा था, लेकिन राजधानी दोहा में हुए ताज़ा हमले ने सीजफायर की उम्मीदों को तोड़ दिया है। इस हमले में हमास के कई कमांडरों को निशाना बनाया गया, जिसके बाद अरब और इस्लामिक देशों में गुस्सा फैल गया है। पाकिस्तान, सऊदी अरब, यूएई समेत कई मुस्लिम देशों ने इस हमले की कड़ी निंदा की है। वहीं, कतर ने स्थिति को ध्यान में रखते हुए रविवार और सोमवार को आपात बैठक बुलाई है, जिसमें इजरायल के खिलाफ कड़ा प्रस्ताव लाने पर विचार किया जाएगा।
कतर अब तक मध्यस्थ की भूमिका निभा रहा था, लेकिन इजरायली हमले ने उसे सीधा विरोधी खेमे में धकेल दिया है। कतर का कहना है कि यह हमला सिर्फ शांति प्रक्रिया को नहीं बल्कि पूरे मध्य पूर्व की स्थिरता को हिला सकता है। ऐसे में अब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सक्रिय हो गए हैं और उन्होंने संकेत दिया है कि वे व्यक्तिगत स्तर पर इस संकट को संभालने की कोशिश करेंगे। ट्रंप न्यूयॉर्क में कतर के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल थानी से मुलाकात करेंगे। इस मुलाकात का मकसद दोनों देशों के बीच समन्वय बढ़ाना और इजरायल पर दबाव डालना है।
कतर के प्रधानमंत्री शुक्रवार को वॉशिंगटन पहुंचेंगे और वहां उनकी मुलाकात अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो और उपराष्ट्रपति जेडी वेंस से भी होगी। शाम को न्यूयॉर्क में वे ट्रंप और मध्य पूर्व मामलों के दूत स्टीव विटकॉफ से मिलेंगे। माना जा रहा है कि इन बैठकों में हमले की परिस्थितियों, क्षेत्रीय स्थिरता और आने वाले हफ्तों में संभावित सीजफायर पर गहन चर्चा होगी।
यह पहला मौका नहीं है जब कतर ने अरब और इस्लामिक देशों को एक मंच पर लाने की कोशिश की है। लेकिन मौजूदा हालात में कतर को पहले से ज्यादा समर्थन मिल रहा है। सऊदी अरब, पाकिस्तान और यूएई ने साफ कर दिया है कि वे कतर के साथ खड़े हैं। इसके अलावा तुर्की, मिस्र और जॉर्डन जैसे देश भी इजरायल की आलोचना कर चुके हैं। अरब दुनिया के इस एकजुट रवैये ने इजरायल पर अंतरराष्ट्रीय दबाव को और बढ़ा दिया है।
दूसरी ओर, पश्चिमी देशों का रुख भी इस बार थोड़ा बदला हुआ दिख रहा है। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने इजरायल के हमले को अनुचित बताया है और स्पष्ट किया है कि वे फिलिस्तीन को मान्यता देने पर विचार करेंगे। पांच यूरोपीय देशों ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि वे संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीन को मान्यता देंगे। यह कदम कतर के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत साबित हो सकता है। ट्रंप अब तक इजरायल के समर्थन में रहे हैं, लेकिन मौजूदा हमले पर उन्होंने कड़ा रुख अपनाते हुए इसकी निंदा की है। उनका कहना है कि मध्य पूर्व में स्थिरता के बिना वैश्विक शांति संभव नहीं है। ट्रंप कतर के प्रधानमंत्री को धैर्य रखने और इजरायल पर सामूहिक दबाव डालने की सलाह देंगे। वहीं, कतर इस मौके का इस्तेमाल इजरायल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने की रणनीति में करेगा।
इस हमले से पहले, सीजफायर के दूसरे दौर की चर्चा चल रही थी। कतर, मिस्र और अमेरिका इस प्रक्रिया में शामिल थे। लेकिन दोहा पर हुए हमले ने यह संकेत दिया है कि इजरायल शांति वार्ता को गंभीरता से नहीं ले रहा। हमास के नेताओं का कहना है कि यह हमला उनकी राजनीतिक आवाज को दबाने की साजिश है। वहीं, कतर की नाराजगी भी बढ़ गई है क्योंकि हमला उसकी राजधानी में किया गया। कतर की ओर से बुलाई गई आपात बैठक में कई इस्लामिक देशों के विदेश मंत्री शामिल होंगे। संभावना है कि इस बैठक में इजरायल के खिलाफ आर्थिक और कूटनीतिक प्रतिबंध लगाने पर विचार किया जाए। कतर यह भी चाहता है कि संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे पर ठोस प्रस्ताव लाया जाए।
पूरे घटनाक्रम का असर संयुक्त राष्ट्र महासभा पर भी पड़ सकता है, जो सितंबर के अंत में होने वाली है। अगर यूरोपीय देश वास्तव में फिलिस्तीन को मान्यता देते हैं, तो यह इजरायल के लिए बड़ा झटका होगा। वहीं, अमेरिका का रुख भी इस बार निर्णायक साबित हो सकता है। ट्रंप की सक्रियता और कतर के साथ उनकी बैठकों से साफ है कि मामला सिर्फ क्षेत्रीय नहीं बल्कि वैश्विक हो चुका है।
फिलहाल, कतर और उसके सहयोगी देशों की निगाहें ट्रंप और कतर के प्रधानमंत्री की मुलाकात पर टिकी हैं। यह मुलाकात यह तय करेगी कि आने वाले दिनों में इजरायल पर कितना अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाया जा सकता है। कतर को उम्मीद है कि अमेरिका उसका समर्थन करेगा और अरब देशों की एकजुटता इस संघर्ष को नया मोड़ देगी।
मौजूदा स्थिति यह भी दिखा रही है कि मध्य पूर्व का संघर्ष अब सिर्फ क्षेत्रीय राजनीति तक सीमित नहीं रहा। यह वैश्विक शक्तियों के बीच संतुलन का मुद्दा बन चुका है। इजरायल के खिलाफ अरब देशों का गठबंधन और पश्चिमी देशों की आलोचना यह संकेत देती है कि आने वाले समय में इजरायल को अलग-थलग किया जा सकता है।
इस घटनाक्रम से एक बात स्पष्ट है – दोहा पर हमला सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी था। इजरायल ने दिखाया कि वह किसी भी स्तर पर जाकर हमास को कमजोर करना चाहता है, लेकिन इसने कतर और अरब दुनिया को उसके खिलाफ और ज्यादा मजबूत कर दिया है। अब देखना यह होगा कि ट्रंप की कूटनीति इस जटिल स्थिति को किस दिशा में ले जाती है।
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