
ग्रामीणों का रेस्क्यू सेंटर पर प्रदर्शन करते हुए बंदरों के आतंक से निजात की मांग करना।
हरिद्वार जनपद के लाहरपुर गांव में बंदरों के बढ़ते आतंक ने ग्रामीणों का जीवन कठिन बना दिया है। फसलों की बर्बादी, बच्चों और बुजुर्गों पर लगातार हमले और घरों में घुसकर सामान नष्ट करने जैसी घटनाओं से परेशान ग्रामीणों का सब्र अब जवाब दे रहा है। शुक्रवार को भारी संख्या में ग्रामीणों ने चिड़ियापुर स्थित रेस्क्यू सेंटर पर प्रदर्शन किया और केंद्र प्रभारी को डीएफओ के नाम ज्ञापन सौंपते हुए अपनी समस्या रखी। ग्रामीणों का आरोप है कि रेस्क्यू सेंटर में बंध्याकरण के बाद बंदरों को उनके ही गांव और आसपास के इलाकों में छोड़ा जाता है, जिसके कारण बंदरों का आतंक थमने की बजाय और भी बढ़ गया है।
ग्रामीणों ने बताया कि गेहूं, धान और सब्जियों जैसी प्रमुख फसलें लगातार बर्बाद हो रही हैं। खेतों में कड़ी मेहनत करने के बावजूद उत्पादन आधा भी नहीं मिल पा रहा है। कई बार बंदर खेतों में झुंड बनाकर फसलों को पूरी तरह नष्ट कर देते हैं। इतना ही नहीं, घरों में रखे अनाज, फल और सब्जियां भी सुरक्षित नहीं हैं। ग्रामीण महिलाओं का कहना है कि रसोई तक में बंदर घुसकर खाने-पीने का सामान खराब कर जाते हैं। इस कारण ग्रामीण परिवार आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक तनाव भी झेल रहे हैं। ग्रामीणों ने बताया कि इस समस्या की शिकायत वे कई बार विभागीय अधिकारियों से कर चुके हैं। प्रार्थना पत्र भी सौंपे गए हैं, लेकिन अब तक कोई स्थायी समाधान सामने नहीं आया। बंदरों के हमले से अब तक कई स्कूली बच्चे और राहगीर घायल हो चुके हैं। डर की वजह से बच्चे अकेले स्कूल जाने से कतराते हैं और महिलाएं खेतों में काम करने से भी हिचकती हैं। ग्रामीणों ने कहा कि बंदरों के आतंक ने उनके जीवन की सुरक्षा और आजीविका दोनों पर संकट खड़ा कर दिया है।
ग्रामीणों ने रेस्क्यू सेंटर पर प्रदर्शन करते हुए मांग की कि गांव और आसपास के क्षेत्रों से बंदरों को पूरी तरह हटाया जाए या फिर उनके लिए स्थायी व्यवस्था की जाए। उनका कहना है कि केवल पकड़ने और बंध्याकरण के नाम पर दिखावा करना समस्या का हल नहीं है। यदि बंदरों को वापस उन्हीं इलाकों में छोड़ दिया जाएगा तो ग्रामीणों को किसी भी प्रकार की राहत नहीं मिलेगी। ग्रामीणों ने प्रशासन से गुहार लगाई कि इस गंभीर समस्या का तुरंत हल निकाला जाए, अन्यथा वे आंदोलन को और तेज करने पर मजबूर होंगे।
लाहरपुर गांव के किसानों ने बताया कि उनकी सालभर की मेहनत बंदरों के कारण बर्बाद हो रही है। खेतों में जब फसलें पकने लगती हैं, तभी बंदरों के झुंड उन पर धावा बोल देते हैं। नतीजतन किसान अपनी फसल की पैदावार बाजार तक ले जाने में असमर्थ हो जाते हैं। कई परिवारों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। उन्होंने कहा कि अगर जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए तो खेती करना मुश्किल हो जाएगा और किसान गांव छोड़ने को मजबूर हो जाएंगे। स्थानीय लोगों का कहना है कि रेस्क्यू सेंटर का मुख्य उद्देश्य लोगों को बंदरों से राहत दिलाना है, लेकिन व्यवस्था के अभाव में यह समस्या और गंभीर होती जा रही है। ग्रामीणों का आरोप है कि विभाग की लापरवाही के कारण गांव-गांव में बंदरों की संख्या अनियंत्रित रूप से बढ़ रही है। उन्होंने यह भी कहा कि वन विभाग को चाहिए कि या तो बंदरों को किसी दूरस्थ जंगल में छोड़ा जाए या फिर उनके लिए अलग से सुरक्षित क्षेत्र बनाया जाए।
ग्रामीणों का यह भी कहना है कि समस्या केवल फसल और संपत्ति तक ही सीमित नहीं है, बल्कि बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा भी दांव पर लगी हुई है। कई बार छोटे बच्चे स्कूल जाते समय बंदरों के झुंड का शिकार बन जाते हैं। कई बुजुर्गों पर भी बंदरों ने हमला कर उन्हें घायल किया है। ऐसे में ग्रामीण परिवार दिन-रात भयभीत रहते हैं। प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी कि यदि उनकी समस्याओं का समाधान नहीं किया गया तो वे बड़े पैमाने पर आंदोलन करेंगे और इसकी जिम्मेदारी प्रशासन पर होगी। ग्रामीणों ने सरकार और वन विभाग से तुरंत हस्तक्षेप की मांग की ताकि उनकी आजीविका और जीवन सुरक्षित रह सके।