
"सुलतानपुर पॉक्सो कोर्ट हत्यारोपी किशोर की अपील खारिज"
रिपोर्टर: जतिन
सुलतानपुर में बड़ा फैसला: हत्यारोपी किशोर की अपील खारिज
सुलतानपुर, जिले में चार वर्षीय मासूम की हत्या के मामले में पॉक्सो कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। विशेष न्यायाधीश नीरज कुमार श्रीवास्तव ने किशोर न्याय परिषद के आदेश को सही ठहराते हुए हत्यारोपी किशोर की अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आरोपी के आचरण और परिस्थितियों को देखते हुए वह रिहा किये जाने का पात्र नहीं है।
मामला कैसे शुरू हुआ?
यह मामला गोशाइंगंज थाने के एक गांव से जुड़ा है। 26 नवंबर 2024 को एक महिला अपने घर पर नहीं थी। इसी दौरान उसका चार वर्षीय बेटा अचानक गायब हो गया। परिजनों ने काफी खोजबीन की लेकिन बच्चा नहीं मिला। जब महिला ने पुलिस को सूचना दी, तो एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू की गई। खोज के दौरान, गांव के बाहर स्थित एक तालाब में बच्चे का शव बरामद हुआ। इस घटना ने पूरे इलाके को हिला दिया।
जांच में आया किशोर का नाम
पुलिस जांच में खुलासा हुआ कि इस मामले में एक स्थानीय किशोर का नाम सामने आया। आरोप था कि घटना के दिन उसे मासूम के साथ देखा गया था। पुलिस ने किशोर को गिरफ्तार कर बाल आश्रय गृह भेजा और मामला किशोर न्याय परिषद में पेश किया। 26 अप्रैल 2025 को कोर्ट ने आरोपी को बाल अपचारी घोषित कर दिया। इसके बाद किशोर की ओर से जमानत याचिका दायर की गई
जमानत याचिका और उसके तर्क
किशोर पक्ष के वकीलों ने दलील दी कि घटना के समय आरोपी अपने ननिहाल में इलाज करा रहा था। साथ ही अभियोगिनी ने किसी का नामजद नहीं किया और न ही किसी ने हत्या करते हुए देखा। यहां तक कि मृत्यु का कारण भी स्पष्ट नहीं था। इन आधारों पर किशोर के वकील ने जमानत की मांग की।
किशोर न्याय परिषद का फैसल
किशोर न्याय परिषद ने जमानत याचिका खारिज कर दी। परिषद ने कहा कि यदि आरोपी को रिहा किया गया, तो वह अपराधियों के संपर्क में आ सकता है और जमानत का उद्देश्य विफल हो जाएगा।
अभियोजन की दलील
निजी अधिवक्ता अमर बहादुर यादव ने कोर्ट में बताया कि घटना के कुछ समय पहले गांव के बाहर बैठे एक मोची ने आरोपी को बच्चे के साथ साइकिल पर बैठे देखा था। पूछने पर आरोपी और बच्चा “आश्रम घूमने जाने” की बात कर रहे थे। इसके अलावा, अंकित शीतला और हरिचरण नामक गवाहों ने भी दोनों को साथ देखने की पुष्टि की थी।
पॉक्सो कोर्ट का अंतिम फैसला
विशेष न्यायाधीश नीरज कुमार श्रीवास्तव ने अपने फैसले में कहा कि प्रोबेशन अधिकारी की रिपोर्ट के अनुसार, आरोपी किशोर में अनुशासन की कमी है। ऐसे में उसे रिहा करना न्यायहित में उचित नहीं होगा। इस आधार पर अदालत ने अपील को निरस्त कर दिया और किशोर न्याय परिषद का आदेश बरकरार रखा।
कानूनी पहलू और पॉक्सो एक्ट की अहमियत
पॉक्सो एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act) का उद्देश्य बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकना और दोषियों को कड़ी सजा दिलाना है। इस मामले में, भले ही मुख्य आरोप हत्या का था, लेकिन पीड़ित की उम्र 18 वर्ष से कम होने के कारण पॉक्सो कोर्ट में सुनवाई हुई
समाज के लिए सबक
यह मामला समाज के लिए एक चेतावनी है कि अपराध चाहे किसी भी उम्र का व्यक्ति करे, न्यायिक प्रक्रिया में ठोस सबूत और गवाह बहुत मायने रखते हैं। नाबालिग होने के बावजूद आरोपी को रिहाई नहीं मिली क्योंकि कोर्ट को लगा कि वह समाज के लिए खतरा बन सकता है। सुलतानपुर के इस मामले में पॉक्सो कोर्ट का यह फैसला साफ संदेश देता है कि कानून की नजर में उम्र से ज्यादा महत्व सबूत और परिस्थितियों का है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि अनुशासनहीनता और संभावित खतरे को देखते हुए रिहाई उचित नहीं।
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